To worship the sun is told in the Vedas of Hinduism. Every ancient scripture has an infinite description of the importance of the sun. It is said that worshipping the Sun God brings positive energy to the body. Surya is the only deity in Hinduism that is directly in front of the eyes. But as is the practice in our country, on the basis of the construction of the temple of God, some Hindu kings built a magnificent sun temple years ago. Konark Sun Temple is one of them. This temple is situated at a distance of about 23 miles from the entire Sehar in the state of Odisha.
It is said that in the 13th century, the temple was built by King Narasimhadeva I between 1234-1250 AD. The temple was built by the king, while Samantarai Mahapatra was in charge of its construction. Konark means the sun and the four corners. The temple was called the Black Pagoda, credited by the Europeans, who used it for navigation for their ships. The temple is said to have pulled the ship to shore due to its magnetic powers.
The temple is known for its impressive Kalinga architecture which includes a depiction of a 100 feet high chariot drawn by horses. This monument portrays the grand chariot of the Sun God. Built of Khondalit rocks, the original temple had a 230 feet high sanctum sanctorum which no longer exists, a 126 feet high audience hall, dance hall, dining hall which is still alive. There are 24 intricately designed wheels, 12 feet in diameter drawn by horses. These seven horses represent the week, the wheels stand for 12 months while the day-cycle wheels are represented by 8 spokes. And this complete depiction shows how time is controlled by Surya - his chariot travels from the east in a chariot run by his ancestor Aruna, as Surya is greatly depicted in Hindu mythology. The special thing to note in this is that at that time when there was no kind of machinery, then the womb house of 230 feet height was left. It is also said that this temple was constructed by first placing the big stones one after the other and then cutting the stones. Prior to the installation of the idol, a 52-ton magnet was placed on the top of this temple and it was so huge that it used to pull ships on its way to the sea. The purpose of kissing was that in this temple, the idol of Surya Bhagwan used to float in the air, which was an attraction for everyone. It is said that this kiss was given to some by the foreign invaders because the sea ships used to forget their way due to the power of this kiss.
It is said about this temple that in the construction of this temple, it was kept in mind that irrespective of the sun or rising from any direction (Uttarayan / Dakshinayan), its first ray will always fall in the temple. The entrance leads to a temple made of chlorine stone, the god of the sun. The temple walls are adorned with relief - intricate carvings of various figures including Hindu deities, images of various mortal life, birds, animals and more. The temple also has erotic sculptures on the summit related to the Tantra tradition. The wheel of the temple can be used as a sundial and it can predict time very well. In the entire temple, iron plates are placed between each and every stone. Due to the magnet above, there was a balance of stones in this entire temple. The entire temple collapsed as soon as the invaders fired the magnet.
This temple has been included in 4 wonders of India due to its texture, structure and beauty. And UNESCO has also included it in the World Heritage List. The lion and elephant figurine are also made at the entrance of the temple and it is said that all these idols are built with 1 big stone.
--------------- In HINDI -------------------
सूर्य की पूजा का वर्णन हिंदू धर्म के वेदों में बताया गया है। हर प्राचीन ग्रंथों में सूर्य भगवान की महत्ता का असीम वर्णन है। कहा जाता है सूर्य भगवान की आराधना करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। हिंदू धर्म में सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आंखों के सामने हैं। लेकिन जैसा कि हमारे देश में प्रथा है की भगवान का मंदिर बनवाने की इसी के आधार पर बरसों पहले कुछ हिंदू राजाओं ने एक भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था । उनमे से ही एक कोणार्क सूर्य मंदिर है | यह मंदिर ओडिशा राज्य में पुरी शहर से लगभग २३ मील की दूरी पर स्थित है |
यह कहा जाता है कि १३वीं शताब्दी मे मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम ने १२३८-१२५० ईस्वी के बीच किया गया था | मंदिर का निर्माण राजा द्वारा किया गया था, जबकि इसके निर्माण के प्रभारी सामंतराय महापात्र थे। कोणार्क का अर्थ सूर्य और चार कोनों से है। इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा कहा जाता था, जिसका श्रेय यूरोपीय लोगों द्वारा दिया जाता है, जिन्होंने इसे अपने जहाजों के लिए नेविगेशन के लिए इस्तेमाल किया। कहा जाता है कि मंदिर के ऊपरी भाग में एक चुम्बक लगाई गई थी जो कि अपनी इस चुंबकीय शक्तियों के कारण जहाज को किनारे तक खींच लेता था।
यह मंदिर अपनी प्रभावशाली कलिंग वास्तुकला के लिए जाना जाता है जिसमें १०० फीट ऊंचे रथ का चित्रण शामिल है जिसे घोड़ों द्वारा खींचा गया है। यह स्मारक सूर्य देव के भव्य रथ को चित्रित करता है। खोंडालिट चट्टानों से निर्मित, मूल मंदिर में २३० फीट ऊंचा गर्भगृह था जो अब मौजूद नहीं है, १२८ फीट ऊंचे दर्शक हॉल, डांस हॉल, डाइनिंग हॉल जो अभी भी जीवित हैं। २४ जटिल डिज़ाइन किए गए पहिए हैं, १२ फीट व्यास में जो घोड़ों द्वारा खींचे गए हैं। ये सात घोड़े सप्ताह का प्रतिनिधित्व करते हैं, पहिए १२ महीनों तक खड़े रहते हैं जबकि दिन-चक्र पहियों में ८ प्रवक्ता द्वारा दर्शाया जाता है। और यह पूरा चित्रण बताता है कि सूर्य द्वारा समय को कैसे नियंत्रित किया जाता है - हिंदू पौराणिक कथाओं में सूर्य का बहुत चित्रण होने के कारण उनके रथ में उनके पूर्वज अरुणा द्वारा भागे गए रथ में पूर्व से यात्रा करते हैं। इसमें ख़ास ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस समय जब किसिस तरह की मशीनरी नहीं थी तब २३० फ़ीट उचाई का गर्भ गृह बांया गया था | कहा यह भी जाता है कि पहले बड़े - बड़े पत्थरों को एक के ऊपर एक रख कर उसके बाद पत्थरों को काट काट कर इस मंदिर का निर्माण किया गया | मूर्ति स्थापना के पहले इस मंदिर के शीर्ष पर एक ५२ टन की चुमबक लगाई गई थी और वो इतनी विशाल थी की पास समुद्र में आते जाते हुए जहाजों को वो अपनी और खींच लेती थी | चुमबक लगाने का उद्देश्य यह था की इस मंदिर में सूर्य भगवन की मूर्ति हवा में तैरती रहती थी जो सबके लिए एक आकर्षण का विषय थी | कहा जाता है की इस चुमबक को विदेशी आक्रमणकारियों ने थोड़ दिया था क्योंकि इस चुमबक की आकषण शक्ति की वजह से समुद्र के जहाज अपना रास्ता भूल जाते थे |
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है इस मंदिर के निर्माण में यह बात ध्यान रखी गई थी की सूर्य चाहे किसी भी दशा में हो, या किसी दिशा (उत्तरायण/दक्षिणायन) से उदय हो हमेशा उसकी पहली किरण मंदिर में पड़ेगी | प्रवेश द्वार सूर्य के देवता क्लोरीन पत्थर से बने मंदिर की ओर जाता है। मंदिर की दीवारें राहत से सजी हैं - हिंदू देवताओं, विभिन्न नश्वर जीवन की छवियों, पक्षियों, जानवरों और अधिक सहित विभिन्न आकृतियों की जटिल नक्काशी। मंदिर में तंत्र परंपरा से संबंधित शिखर पर कामुक मूर्तियां भी हैं। मंदिर के पहिये का उपयोग सूंडियल के रूप में किया जा सकता है और यह समय की बहुत अच्छी तरह से भविष्यवाणी कर सकता है। पुरे मंदिर में हर सो पत्थरों के बीच लोहे की प्लेट लगी हुई है | उपर लगे चुंबक के कारण इस पुरे मंदिर में लगे पत्थरों का संतुलन बना हुआ था | जैसे ही आक्रमणकारियों ने चुंबक को निकला वैसे ही पूरा का पूरा मंदिर ढह गया |
इस मंदिर को इसकी बनावट संरचन और ख़ूबसूरती की वजह से भारत के ७ आश्चर्यों में सम्मिलित किया गया है | और यूनेस्को (UNESCO) ने भी इसको वर्ल्ड हेरिटेज सूची में सम्मिलित किया है | मंदिर के प्रवेश द्वार पे शेर और हाथी के मुर्तिया भी बनी है और कहा जाता है ये सभी मूर्तियां १ बड़े पत्थर से निर्मित की गई है |
Comments
Post a Comment