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Untold facts and interesting information of Jagannath temple Puri (पुरी जगन्नाथ मन्दिर के अनकहे तथ्य और रोचक जानकारी)

Shri Jagannath Temple Puri is one of the famous temples of Hindus. This temple is located by the sea in Puri, a famous city of Odisha. The word Jagannath means the Nath of the world, the lord of the whole world. According to Hinduism, Lord Vishnu is the lord of the whole world. This temple is dedicated to Shri Krishna, the eighth avatar of Lord Vishnu, in this temple the idols of Lord Balarama, Shri Subhadra and Lord Krishna are installed. The annual Rath Yatra festival of this temple is world-famous. This chariot journey has been practised since the middle ages. During the Rath Yatra festival, people from every corner of the world arrive here to see God. This temple is not only a symbol of faith but also a wonderful specimen of craftsmanship. Many mysteries of the architecture of this temple have not been uncovered yet.


Jagannath Temple History

There is also a wonderful story of the construction of this temple. According to the legend, King Indradyumna of Malwa was an ardent devotee of Lord Vishnu. Lord Vishnu himself appeared in the dream to the king and said that on Puri beach you will find a wooden stick with that you start the construction of the idol. The next day the king went to the seashore and got the logs, after that the problem came from who would make the idol. It is said that Lord Vishwakarma, the all-skilled craftsman of the three worlds, himself appeared as an old man for idol-making. He told the king that he will build the idol but with the condition that he will build these idols in a closed room and till the work of the idol is complete no one will enter that room nor till Will peek, even if the king is you. The month had come to an end and one day there was no sound of idol building from inside the room, so the king's wife Rani Gundicha could not stop herself from worrying. He brought this news to the king. Worried, the king tried to peep into the room and finally opened the door and saw that idols had not been fully constructed. Now the construction of the hand remains in the sculptures and the sculptor was not even in the room. Later the king got very angry and repented for himself for this act on his own. Finally, after negotiating with his own people, he considered it the will of God and installed the temple's idols. Since then, all the murtis are established in the same state.

This Jagannath temple is one of the largest religious places in Hindu religious places and the nature of religious tolerance and ordination. This is one of the four shrines of Hindu followers.

This temple of Lord Jagannath is spread over a 4 lakh square area. Four gates have been constructed in the four directions of this temple. It is said that when this temple was built, this temple was built along the sea. Due to the sea's declining water level, it is now about 3-4 kilometres away from the sea.


Amazing Wonders of Jagannath Temple:

1)The flag on the top of this magnificent temple always wave in the opposite direction of the wind.

2) From the last 1700 years, the flag of this temple is changed daily by some priest of the temple at dusk.

3) No bird or aircraft has been seen flying above the temple premises to date.

4) The shadow of the main dome of the temple has never been seen on the earth in the temple courtyard.

5) Normally, where air moves from the sea towards the earth during the day and in the evening it moves from the earth towards the sea, the same is completely opposite in Puri.

6) If you see the Sudarshan Chakra on the top of the temple from anywhere in Puri, it will be seen in front of you. This cycle is also called Neelachakra. This chakra is made of Ashtadhatu and goes very holy.

7) The kitchen of the temple is also very spacious. Here about 20 lakh devotees can eat daily together. Foodgrains in the temple are full of food grains throughout the year. The cooking of Prasad in the kitchen is also a different process. To cook the prasad, 4 utensils are cooked by placing one on top of each other and the miracle is that the food is cooked first in the top and only the utensil is near the bottom of the fire.

8) After every 12 years, the temple idols are newly decorated. Idols are definitely made new, but the shape and form remain the same.

How to reach the temple ........

If you want to reach Puri by air, then you have to reach Bhubaneswar and from there you can reach Puri by road or rail. It will take about 63 kilometres and approximately 1:15 hours by road from the airport and almost the same time by rail route.

If you are coming by rail route then you can reach Puri directly. According to the rail route, besides Puri, the nearest stations are Khurda Road Junction and Bhubaneswar.


-----------In HINDI----------

श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है | यह मंदिर ओडिशा के एक प्रसिद्ध शहर पुरी में समुद्र के किनारे स्थित है | जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के नाथ अर्थात संपूर्ण जगत के स्वामी | हिन्दू धर्म के हीअनुसार सम्पूर्ण जगत के स्वामी भगवन विष्णु है | यह मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है इस मंदिर में भगवान बलराम, श्री सुभद्रा और भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित है | इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव विश्व विख्यात है | इस रथ यात्रा का चलन मध्य काल से ही है | रथ यात्रा उत्सव के दौरान दुनिया के कोने- कोने से लोग भगवान के दर्शन के लिए यहाँ पहुंचते हैं | यह मंदिर केवल आस्था का प्रतीक ही नहीं अपितु शिल्पकला का भी अद्भुत नमूना है | इस मंदिर की शिल्पकला के कई रहस्यों को अभी तक कोई खोल नहीं पाया है | 
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

इस मंदिर के निर्माण की भी एक अद्भुत कथा है | कथानुसार मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न भगवान श्री विष्णु के अनन्य भक्त थे | भगवन विष्णु ने स्वयं राजा को स्वपन में दर्शन दिए और कहा पुरी समुद्र तट पर तुम्हे लकड़ी का लट्ठ मिलेगा उस से तुम मूर्ति का निर्माण शुरू कराओ | अगले दिन राजा प्रातः समुद्र के किनारे गए और उनको लट्ठ मिल गए, उसके बाद समस्या यह  सामने आई कि मूर्ति का निर्माण किस से कराया जायेगा | कहा जाता है कि तीनो लोकों के सर्व कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा स्वयं मूर्ति निर्माण के लिए एक वृद्ध व्यक्ति का रूप लेकर प्रकट हुए थे | उन्होंने राजा से कहा मैं मूर्ति का निर्माण कर दूंगा मगर इस शर्त के साथ कि वो इन मूर्तियों का निर्माण एक बंद कमरे में करेंगे और जब तक मूर्ति का काम पूरा नहीं होगा तब तक कोई भी उस कमरे में न ही प्रवेश करेगा और न ही तक झांक करेगा चाहे राजा जी वो आप ही क्यों न हो | महीना समाप्ति की और आ गया था और एक दिन कमरे के अंदर से मूर्ति निर्माण की कोई आवाज नही आ रही थी तो चिंतावश राजा की पत्नी रानी गुंडिचा अपने आप को रोक नहीं पाई | उसने ये खबर राजा तक पहुंचाई | चिंतावश राजा ने कमरे में तक झांक की कोशिश की और अंततः दरवाजा खोल दिया और देखा कि मुर्तिया पूर्ण रूप से निर्मित नहीं हो पाई है | अभी मूर्तियों में हाथ का निर्माण शेष रह गया है और मूर्तिकार भी कमरे में नहीं था | बाद में राजा को स्वयं पर इस कृत्य के लिए अपने आप पर बहुत क्रोध आया और पश्चाताप भी हुआ | अंततः उन्होंने अपने स्वजनों से वार्ता उपरांत इसे भगवान की यही इच्छा मानकर मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया | तब से आज तक सभी मुर्तिया उसी अवस्था में ही स्थापित है | 


यह जगन्नाथ मंदिर धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय के सवरूप के साथ-साथ हिन्दू धार्मिक स्थलों में सबसे एक बड़ा धार्मिक स्थल कहा जाता है | हिन्दू अनुयाईयों के चार धाम में से यह एक धाम है | 

भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर 4 लाख वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है | इस मंदिर के चारों दिशों में चार द्वार का निर्माण किया गया है | कहा जाता है जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था तब यह मंदिर समुद्र के किनारे बनाया गया था | लेकिन समुंद्र के घटते जल स्तर की वजह से अब समुद्र से लगभग 3- 4 किलोमीटर दूर हो गया है | 


जगन्नाथ मंदिर के अद्भुत आश्चर्य :

१) इस भव्य मंदिर के शिखर पर लहराने वाली ध्वजा/पताका हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराती है  | 

२) गत १८०० वर्ष से इस मदिर की ध्वजा को प्रतिदिन संध्या के समय मंदिर के किसी न किसी पुजारी द्वारा बदला जाता है | 

३) आज तक किसी पक्षी या विमान को मंदिर प्रांगण के ऊपर से उड़ते हुए नहीं देखा गया है | 

४) मंदिर के मुख्य गुम्बद की परछाई को कभी भी मंदिर प्रांगण में धरती पर  नहीं देखा गया है | 

५) सामान्यतः  जहा दिन के समय समुद्र से वायु धरती की और चलती है और शाम में धरती से समुद्र की ओर चलती है वही पुरी में इसके बिलकुल विपरीत होता है | 

६) मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को आप पुरी में कहीं से देखोगे तो यह आपके सामने ही लगा दिखेगा | इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है | यह चक्र अष्टधातु से निर्मित है और बहुत पवित्र मन जाता है |

७) मंदिर का रसोईघर भी बहुत विशाल है | यहाँ लगभग २० लाख भक्त एक साथ रोज भोजन कर सकते हैं | मंदिर में भोजन के लिए भंडार में पुरे साल का अनाज भरा रहता है | रसोई में प्रसाद पकाने की भी अलग ही प्रक्रिया है | प्रसाद को पकाने के लिए ७ बर्तनो को एक के ऊपर एक रख कर पकाया जाता है और चमत्कार ये है कि भोजन सबसे पहले ऊपर वाले बर्तन में ही पकता है और जो बर्तन सबसे नीचे आग के पास है उसमे सबसे बाद में |  

८) प्रत्येक १२ वर्ष के उपरांत मंदिर की मूर्तियों का नव कलेवर किया जाता  है | मूर्तियां नई तो जरूर बनाई जाती है लेकिन आकर और रूप वही रहता है |

मंदिर कैसे पंहुचा जाए ........  

अगर आप हवाई मार्ग द्वारा पुरी पहुंचना चाहते हैं तो आपको भुबनेश्वर पहुंचना होगा और वहां से आप रोड या रेल मार्ग द्वारा पुरी पहुंच सकते हैं | एयरपोर्ट से रोड द्वारा लगभग यह दुरी ६३ किलोमीटर और लगभग १:१५ घंटे का समय लगेगा और लगभग रेल मार्ग से भी इतना ही समय लगेगा | 
अगर आप रेल मार्ग से आ रहे हैं तो आप सीधे ही पुरी पहुंच सकते हैं | रेल मार्ग के हिसाब से पुरी के अलावा नजदीकी स्टेशन खुर्दा रोड जंक्शन और भुबनेश्वर है | 
 

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