छठ पर्व कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्मावलम्बियों का पर्व है | सूर्य देव समर्पित यह अनुपम पर्व मुख्यतः बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कई इलाकों में मनाया जाता है | यह पर्व इन प्रांत वासियों का सबसे बड़ा पर्व और इनकी संस्कृति का प्रतीक है | आप कह सकते हैं यह एक मात्र ही ऐसा पर्व है जो बिहार या भारतवर्ष में वैदिक काल से ही मनाया जा रहा है | इस पर्व का वर्णन ऋषियों द्वारा लिखी गई ऋग्वेद में सूर्य पूजा और उषा पूजन में मिलता है |
धीरे - धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ आज विश्वविख्यात हो गया है | छठ पूजा सूर्य देव की बहन छठी को समर्पित है | इस पूजा का उद्देश्य उनको पृथ्वी पर जीवन बहाल करने के लिए धन्यवाद और शुभकामनाये देने का अनुरोध है | छठ पूजा में कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं है |
इस पर्व के अनुष्ठान बड़े कठोर हैं और चार दिन की अवधि में मनाये जाते हैं | इसमें पवित्र स्नान, बिना जल के उपवास, लम्बे समय तक पानी में खड़े रहना, प्रसाद प्रार्थना और अर्घ्य देना है | इस में मुख्य उपासक महिलाये ही होती हैं जिन्हे "पर्वातिन " कहा जाता है | इस दौरान पर्वातिन ३६ घंटे का उपवास रखती हैं | पुरुष लोग भी इस त्यौहार का निष्ठा से पालन करते हैं |
यह त्यौहार वैसे तो ४ दिन का होता है | इस पर्व की शुरुआत दिवाली के चौथे दिन से ही हो जाती है | पहले दिन सेंधा नमक घी से कद्दू की सब्जी बनाकर अरबा चावल के साथ प्रसाद में ग्रहण किया जाता है | इसके दूसरे दिन से उपवास प्रारम्भ होता है | व्रती दिन भर अन्न जल त्यागकर सूर्यास्त के बाद खीर बनाकर पूजा के उपरांत ग्रहण करते हैं जिसे खरना जाना जाता है | इसके अगले दिन यानि तीसरे दिन का उपवास छोटे दिन के सूर्योदय अर्घ्य के साथ ख़तम होता है | तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को दूध या जल अर्घ्य अर्पण लरते हैं | तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है और चौथे और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य की पूजा के साथ यह महा पर्व संपन्न होता है |
इस पूजा के उत्सव का स्वरुप
नहाये खाये - यह पहले दिन का त्यौहार है इस दिन घर की साफ़ सफाई कर उसको पवित्र किया जाता है | उसके बाद व्रती अपने नजदीकी नदी या तालाब में जाकर स्नान करते हैं | इस दिन में आरती सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैं | खाने में कद्दू की सब्जी, मुंग दाल या चना दाल और अरबा चावल का प्रयोग किया जाता है | यह खाना भी कांसे या मिट्टी के बर्तन में लकड़ी या मिटटी के चूल्हे पर बनाया जाता है | इस दिन व्रतधारियों के लिए तला खाना वर्जित होता है |
खरना और लोहंडा - इस दिन व्रती पुरे दिन का उपवास रखते हैं | इस दिन व्रती सूर्यास्त के पहले कुछ भी भोजन ग्रहण नहीं करते हैं | शाम को चावल, गुड़ और दूध का प्रयोग करके खीर बनाई जाती है | घर में पीसे हुए गेहूं के आटे की रोटियां बनाई जाती है | खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है | सूर्यास्त उपरांत व्रती इसे ग्रहण करके अपने परिवार जनों और मित्रों - रिश्तेदारों को खीर -रोटी का प्रसाद खिलते है | इसको ही खरना के नाम से जाना जाता है | इसके बाद व्रती ३६ घंटों का निर्जला व्रत रखा जाता है | मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा का विशेष प्रसाद ठेकुआ बनती हैं
संध्या अर्घ - इस दिन सब लोग इस पूजा की विशेष तैयारी करते हैं | छठ पूजा के लिए बांस की बनी टोकरी या सूप में पूजा के प्रसाद फल रख दिया जाता है | वजन पूजा करके शाम को सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और अन्य सामान डालकर उसे घाट पर ले जाते हैं | इसको सर पर उठाकर ही ले जाया जाता है जिससे की यह अपवित्र ना हो जाये | घाट जाते हुए महिलाये छठ के गीत भी गाते हुए जाती हैं |
पूजाउपरांत सूर्यास्त के बाद इन्हे टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है | बहुत सारे लोग तो रात भर पर ही रुक जाते हैं |
उषा अर्घ्य - इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है | सूयोदय से पहले ही वरतो लोग घाट पर पहुंच जाते हैं | सिर्फ व्रती लोग पूर्व दिशा की और मुँहकर खड़े हो जाते हैं और उगते उपासना करते हैं | पूजा समाप्ति के बाद घाट की पूजा की जाती है | पूजा के पश्चात् व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर प्रसाद ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करते हैं |
छठ पूजा का मूल सूर्य देव की पूजा का पर्व है | सूर्य देव को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है | हिन्दू धरम में सूर्य ही ऐसे देवता है जो मूर्ति स्वरुप में देखा जा सकता है |
छठ पूजा के बारे में कई प्रचलित कथाये भी हैं
पर्वातिन के अनुसार भगवन राम सूर्यवंशी थे | जब वो लंका पर विजय करके वापस आये थे तो उन्होंने अपने कुलदेवता सूर्य भगवन की उपासना की थी | उन्होंने देवी सीता के साथ षष्टी तिथि पर व्रत रखा और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया और सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य था | इसके बाद से सूर्य देव की आराधना की जाने लगी और तब से छठ पर्व मान्या जाने लगा |
दूसरी कथा के अनुसार अंग देश के राजा कर्ण जो की सूर्य और कुंती के पुत्र थे | वो नियम पूर्वक कमर तक पानी में जाकर सूर्य देव की आराधना करते थे | माना जाता है की षष्ठी और सप्तमी को कर्ण सूर्य देश की विशेष पूजा कर दान देते थे | अपने राजा की भक्ति से प्रभावित हो कर अंग देश के निवासी भी सूर्य देव की पूजा करने लगे |
तीसरी कथा के अनुसार महारानी कुंती ने सरस्वती नदी में पुत्र प्राप्ति की इच्छा से सूर्य की पूजा की थी | इस से कुंती को संतान सुख प्राप्त हुआ था | तब से संतान प्राप्ति के लिए छठ पर्व का बड़ा महत्व है |
इस त्यौहार को हिन्दू त्योहारों में सबसे पर्यावरण के अनुरूप त्यौहार माना गया है
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Chhath festival is the festival of the Hindu religious leaders celebrated on the Sapti Tithi of Shukla Paksha of Kartik Moss. This Anupam festival dedicated to the Sun God is mainly celebrated in many areas of Bihar, Jharkhand, Eastern Uttar Pradesh and Nepal. This festival is the biggest festival of these people and is a symbol of their culture. You can say that this is the only festival that is being celebrated in Bihar or India since Vedic period. The description of this festival is found in Surya Puja and Usha Puja in the Rigveda written by the sages.
Gradually, this festival has become world-famous with the diaspora today. Chhath Puja is dedicated to the sixth sister of Sun God. The purpose of this puja is to thank and request good luck to restore life on earth. Chhath Puja does not include any idol worship.
The rituals of this festival are very rigorous and are celebrated over a period of four days. It consists of a holy bath, fasting without water, standing in water for a long time, offering prayers and offering prayers. The main worshipers in this are women who are called "Parvatins". During this period Parvatin keeps fast for 37 hours. Men also faithfully observe this festival.
This festival is generally 4 days long. This festival starts on the fourth day of Diwali. On the first day, rock salt is made from ghee and pumpkin vegetable is prepared and offered in prasad with Arba rice. Fasting starts from its second day. The fasters leave food grains throughout the day and prepare pudding after sunset and consume it after worship, which is known as kharna. The next day, ie, the third day of fasting ends with the sunrise of the short day. On the third day, we offer milk or water to the sun while drowning. The sun is worshipped on the third day, and this great festival is concluded with the worship of the rising sun on the fourth and last day.
As a celebration of this worship
Eat Nahee - This is the festival of the first day, on this day, the house is cleaned and purified. After that, the Vratis go to their nearest river or pond and take a bath. In this day, Aarti eats only once. Pumpkin vegetable, mung dal or chana dal and Arba rice are used in the food. This food is also made on a wood or clay stove in bronze or earthen pot. On this day, fried food is forbidden for the fast.
Kharna and Lohanda - On this day, Vratis keep fast for the whole day. On this day, Vratis do not eat anything before sunset. Kheer is made in the evening using rice, jaggery and milk. Wheat flour loaves are made at home. Salt and sugar are not used in cooking. After sunset, the fast is received and it is offered kheer-roti to their family members and friends and relatives. This is also known as Kharna. After this, fasting is kept for 37 hours. In the middle of the night, special offerings of Vrathi Chhath Puja are made of Thekua
Sandhya Argh - On this day everybody prepares for this puja. For Chhath Puja, offerings of puja are placed in a basket or soup made of bamboo. In the evening, after weight worship, put coconut, five types of fruits and other items in the soup and take it to the ghat. It is taken only by lifting it on the head so that it does not become impure. While going to the ghat, women also sing the song of Chhath.
All the items of worship are kept in a clean place on the banks of a river or a pond. Shortly before sunset, standing in knee-deep water with all the items of worship of the Sun God and revolving five times by offering arghya to the sinking sun.
After sunset after worship, they are kept safe in the crate to offer to the rising sun tomorrow morning. Many people stay overnight.Usha Arghya - Arghya is offered to the rising sun on this day. Varto people reach the ghat before sunrise. Only the fasting people stand facing east and perform rising worship. The ghat is worshipped after the end of worship. After the Puja, the devotees drink the syrup of raw milk and take the prasad and complete the fast.
The root of Chhath Puja is the festival of worship of Sun God. Surya Dev enjoys a special place in Hinduism. In Hindu Dharam, Surya is the only deity that can be seen in the idol form.
There are many popular stories about Chhath Puja.
According to the first story, Lord Rama was Suryavanshi. When he came back after conquering Lanka, he worshipped his patriarch Surya Bhagwan. He fasted with Goddess Sita on Sasthi Tithi and offered Arghya to the setting sun and Arghya to the rising Sun on Saptami Tithi. After this, worship of Sun God started to be done and since then Chhath festival started being celebrated.
According to the second story, King Karna of Anga, who was the son of Surya and Kunti. He used to worship Sun God in the water up to his waist. It is believed that on Shashthi and Saptami, Karna gave special worship to the country of Sun and donated it. Impressed by the devotion of their king, residents of Ang country also started worshipping Sun God.
According to the third story, Queen Kunti worshipped the sun in the Saraswati river with the desire of having a son. Kunti got child happiness from this. Since then Chhath festival has great importance for getting children.
This festival is considered the most environmentally friendly festival among Hindu festivals.
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